(सौजन्य-गूगल)
http://mktvfilms.blogspot.in/2012/08/blog-post_7.html
तेरी रुसवाई । (गीत)
जब हमें तेरी रुसवाईयाँ डसती हैं ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
भली-चंगी तो लग रही थीं अभी तक !
हम नहीं, ये गुमनामियाँ कहती है ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
(रुसवाई=बदनामी)
अन्तरा-१
ग़मज़दा दिल को अब, कुछ ना भाता है ।
रह रह कर ये कलेजा, मूँह को आता है ।
लग रही थीं ये, आईने की रौनक अयां !
हम नहीं, धुंधली परछाईयाँ कहती है ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
(अयां=साफ)
अंतरा-२.
ग़म ग़लत करने का बहाना है पीना ।
यारों, जीना भी ऐसा, है कोई जीना ?
नामुराद ज़िंदगी अब, क्या संभल पायेगी !
ये हम नहीं, ज़बर मजबूरियाँ कहती है ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
(नामुराद=विफल ; ज़बर=प्रचंड )
अंतरा-३.
मयक़दे का साक़ी, बड़ा ही जालिम है ।
यहाँ मदहोशी भी, लूटने का आलम है ।
लूटा दे सब कुछ, ख़ुदकुशी भी कर लें ।
हम नहीं, निगोड़ी गमगिनियाँ कहती हैं ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
(निगोड़ी=बदनसीब)
अंतरा-४.
पैमाने फिसलना, बात आम होती है ।
कभी न कभी, ज़िंदगी तमाम होती है ।
ग़द्दार सांसो का ग़म मत करना यारों ।
टूटे ख़्वाबों की बदरंगिनियाँ कहती है ।
ज़िंदगी गहरी सिसकीयाँ भरती है ।
(बदरंग=मलिन)
मार्कण्ड दवे । दिनांक-०६-०८-२०१२.
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[Gujarati Club] तेरी रुसवाई । (गीत)
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